my best friend essay in hindi
मेरा प्रिय मित्र प्रस्तावना-मनुष्य को उसके जीवन में आने वाली विघ्न-बाधाएँ हमेशा परेशान करती रहती हैं। इस लेख मे कुल 3 निबंध दिये
गये हे जिन्हे आप एक -एक करके पढ सकते हे । इनसे छुटकारा पाने के लिए उसे
परस्पर सहयोग की आवश्यकता होती है। यह केवल मित्रता के द्वारा ही सम्भव
है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य का कोई-न-कोई सच्चा मित्र होता है। सच्चे मित्र
की पहचान-जीवन में मित्र तो बहुत मिल जाते हैं किन्तु सच्चे मित्र का मिलना
बहुत ही कठिन है।
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वास्तव में सच्चे मित्र की पहचान करना तो बहुत ही कठिन कार्य है। सच्चा मित्र तो वह होता है जो विपत्ति में साथ देता है। सच्चे मित्र के सम्मुख हम अपने मन की सभी बातें खोलकर रख सकते हैं। वह अपने मित्र को कुमार्ग से बचाकर सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
मित्र के अवगणों पर पर्दा
डालकर उन्हें दूर करने की कोशिश करता है और उसकी अच्छाइयों की प्रशंसा
करता है। मेरा प्रिय मित्र-गौतम ही मेरे सुख-दुःख का साथी है। वह मेरा
प्रिय मित्र है। उसमें वे सभी गुण विद्यमान हैं जो एक सच्चे मित्र में होने
चाहिएँ। वह मेरा पड़ोसी भी है और मेरे साथ ही कक्षा में पढ़ता है।
उसकी आयु लगभग 11
वर्ष की है। वह नियमितता का पालन करने वाला है और मुझे भी नियमितता के लिए
बाध्य करता है। वह अध्ययन के समय अध्ययन करता है और खेलने के समय खेलता
है।
वह अपने समय को व्यर्थ नष्ट
नहीं करता है। अत: वह प्रत्येक कार्य समय पर करना पसन्द करता है। हमारा
अधिकांश समय एक साथ ही व्यतीत होता है। पढ़ाई के विषय में हम दोनों के मध्य
स्वस्थ स्पर्धा रहती है। हम दोनों परीक्षा में प्रायः एक-दो अंकों से
आगे-पीछे रहते हैं।
मेरे मित्र के अन्य गुण-मेरा
मित्र गौतम गुणों की खान है। वह अनुशासन-प्रिय बालक है। वह सदैव प्रात:
काल सैर करने जाता है। वह सदैव अपने स्वास्थ्य और स्वच्छता का ध्यान रखता
है। वह समय पर पाठशाला जाता है तथा वहाँ मन लगाकर पढ़ता है।
वह अपने अध्यापकों की बातों
को ध्यान से सुनकर उस पर अमल करता है। इसलिए वह सदैव अपनी कक्षा में
सर्वप्रथम रहता है। उसकी खेलों में भी रुचि है। वह प्रथम श्रेणी का खिलाड़ी
है। इतना ही नहीं वह समाज सेवा में भी खूब भाग लेता है अर्थात् वह
दीन-दु:खी व्यक्ति की समय पड़ने पर सहायता करता रहता है।
उसके मधुर व्यवहार से पड़ोसी
भी खुश रहते हैं। उसके अधरों पर सदैव मुस्कान बनी रहती है। उपसंहार-आज इस
स्वार्थपरता के युग में गौतम जैसा सच्चा मित्र मिलना सौभाग्य की बात है। वह
हमेशा मुझे उन्नति के शिखर पर देखना चाहता है।
वह सदैव मुझ पर तन, मन,
धन न्यौछावर करने के लिए तत्पर रहता है। उसका मेरे प्रति अटूट प्रेम है।
वह छल, कपट तथा स्वार्थ से सदैव दूर रहता है, इसीलिए प्रत्येक उसे अपना
मित्र बनाने को तैयार रहता है।
गौतम के इन गुणों के
कारण उसके माता-पिता, विद्यालय व उसके साथियों को उस पर गर्व है। मेरी
प्रभु से यही प्रार्थना है कि हमारी मैत्री जीवन-पर्यन्त बनी रहे ताकि
विपत्ति के समय एक-दूसरे की सहायता कर सकें।
Essay no 2
मेरा प्रिय मित्र स्कूल में मेरे
कई मित्र हैं। उन सबमें अनिल मेरा प्रिय मित्र है। वह मेरी ही कक्षा में
पढ़ता है। हम दोनों साथ-साथ पाठशाला जाते हैं और साथ-साथ ही घर लौटते हैं।
हम हररोज एकसाथ बैठकर पढ़ाई करते हैं।
अनिल बहुत अच्छा लड़का है।
वह हमेशा साफ-सुथरा
रहता है। वह पढ़ाई में तेज़ है। खेल-कूद में भी वह सबसे आगे रहता है। वह
हमारी कक्षा का मॉनीटर है। कक्षा के सब लड़के उसे चाहते हैं। वह सभी
अध्यापकों का भी प्रिय छात्र है।
अनिल कभी किसी से
झगड़ा नहीं करता। वह सबसे मिल-जुलकर रहता है। वह हमेशा दूसरों की मदद करता
है। अनिल जैसा मित्र पाकर मैं अपने आपको भाग्यशाली समझता हूँ। दोस्तों ये
निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए । और आगे दिया हुआ दूसरा
निबंध पढ़ना मत भूलियेगा धन्यवाद ।
निबंध 3
मेरा सच्चा मित्र पर निबंध – My Best Friend Essay In Hindi
फूल न हों तो बाग सूना लगता है। उसी
तरह मित्र न हों तो जीवन सूना लगता है। जीवन को आनंददायक बनाने के लिए
मित्रों का होना आवश्यक है। व्यक्ति के कई मित्र हो सकते हैं। परंतु उनमें
से सच्चा मित्र तो कोई एक ही होता है। जिसे सच्चा मित्र मिल जाए, वह बहुत
भाग्यशाली है।
हमारे अधिकतर संबंध स्वार्थ पर
आधारित होते हैं। सच्चे मित्र में स्वार्थ की भावना नहीं होती। उसकी
मित्रता का आधार लोभ-लालच नहीं होता। मित्रता के बहाने वह अपना मतलब
निकालने का इरादा नहीं रखता। वह हमेशा अपने मित्र का भला चाहता है। मित्र
की उन्नति में वह अपना पूरा सहयोग देता है।
विपत्ति की घड़ियाँ सबके जीवन
में आती हैं। उस समय प्राय: सगे-संबंधी भी मुँह फेर लेते हैं। यहाँ तक कि
परिवारवाले भी बेरुखी दिखाते हैं। उस कठिन समय में सच्चा मित्र ही साथ देता
है। मित्र की सहायता करने के लिए वह अपनी सुख-सुविधा की परवाह नहीं करता।
वह तन-मन-धन से अपने मित्र
की मदद करता है। सच्चे मित्रों के कई उदाहरण हैं। सच्चा मित्र होने के
कारण ही द्वारकाधीश श्रीकृष्ण ने सुदामा की दरिद्रता दूर की थी। बलि का वध
कर राम ने सुग्रीव के साथ सच्ची मित्रता निभाई थी।
सिंहगड विजय के लिए शिवाजी का
बुलावा आने पर उनके सरदार एवं मित्र तानाजी अपने पुत्र का विवाह छोड़कर
अभियान पर चले गए थे। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर
बताइए ।