nadi ki atmakatha in hindi
मैं
गंगा नदी हूँ। भारत के लोग मुझे सब नदियों में पवित्र और पूज्य मानते हैं।
मैं संसार की प्रसिद्ध नदियों में से एक हूँ। मैं बहुत पुरानी नदी हूँ।
तुमने तो भारत का इतिहास पढा ही होगा। उस इतिहास को मैंने बनते हुए देखा
है।
मैं अपने जन्म और बचपन के बारे में कुछ नहीं जानती। इतना जरूर जानती हूँ कि किसी समय मैं भगवान शिव की जटाओं में रहती थी।
मुझे
आज भी वह घटना याद है, जब भगवान शिव ने एक तपस्वी से कहा था, "अच्छा, मैं
गंगा को धरती पर भेजता हूँ।'' वे तपस्वी थे राजा भगीरथ। उन्होंने मुझे धरती
पर लाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से भगवान शिव खुश हुए।
उन्होंने मुझे धरती पर जाने का आदेश दिया। तब से मैं 'भागीरथी' के नाम से
प्रसिद्ध हुई।
nadi-ki-atmakatha-in-hindi |
धरती पर मेरे उतरते ही हिमालय ने मुझे गोद में उठा लिया। इसलिए मैं उन्हीं को अपना पिता मानती हूँ। उनके विशाल आँगन में उछलने-कूदने में मुझे बहुत मजा आता था। हिमालय पर्वत से नीचे आते ही मैं धीर-गंभीर होकर आगे बढ़ने लगी। नीचे उतरकर मैंने देखा कि लोग प्यास से बेहाल हैं। मैंने उन्हें स्नेह से अपना ठंडा-मीठा जल पिलाया। मेरे कदम बढ़ते ही रहे। लोगों की खुशियाँ भी बढ़ती गईं।
देखते ही देखते मेरे किनारों पर अनेक
गाँव और शहर बस गए। ऋषिकेश, हरिद्वार, प्रयाग, वाराणसी आदि कितने ही
बड़े-बड़े और प्रसिद्ध शहर मेरे दोनों किनारों पर बस गए। अंत में कलकत्ता
पहुँचने पर मैं ' हुगली' के नाम से प्रसिद्ध हुई। वहाँ मैं बंगाल के विशाल
उपसागर में समा जाती हूँ।
अपनी सेवा का मुझे
अच्छा फल मिला है। लोग मुझे श्रद्धा से 'गंगा मैया' के नाम से पुकारते हैं।
मेरे जल को लोग पवित्र मानते हैं। शुभ कार्यों में मेरे ही जल से अभिषेक
होता है। श्रद्धालु लोग मेरे पवित्र जल में स्नान कर अपने आप को धन्य मानते
हैं। मैं भारत की सभ्यता व संस्कृति के साथ घुल-मिल गई हूँ।
पर
आज मेरे किनारे पर अनेक कल-कारखाने बन गए हैं। उनसे निकलनेवाला सारा
कूड़ा-कचरा और रद्दी रसायन मुझमें डाला जाता है। इससे मेरा जल दूषित हो गया
है। मेरे तट पर बसे शहरों का भी सारा कचरा मुझमें ही डाला जा रहा है। इससे
मैं बहुत दुखी हूँ। सोचती हूँ क्या राजा भगीरथ मेरी यही दुर्दशा कराने के
लिए भगवान शिव की जटा से मुझे धरती पर लाए थे?
वर्षों
से मेरे जल को शुद्ध करने की बातें तो हो रही हैं। उसके लिए कई योजनाएँ
बनीं। पर अभी तक ये सारी योजनाएँ असफल रही हैं। मैं नहीं जानती, मेरा जल कब
स्वच्छ होगा। मेरी यही इच्छा है कि मेरे निर्मल जल को गंदा न किया जाए।
तभी मैं भारत वर्ष के लोगों की युगों-युगों तक सेवा कर सकूँगी।