नागरिक के अधिकार और कर्तव्य पर हिंदी निबंध | nagrik ke adhikar aur kartavya par nibandh in hindi |
नमस्कार दोस्तों आज हम नागरिक के अधिकार और कर्तव्य इस विषय पर निबंध जानेंगे।प्रस्तावना-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। परिस्थिति के अनुसार ही वह स्वयं को ढाल लेता है। समाज की स्थिति के अनुरूप ही वह अपने में परिवर्तन करता रहता है।
सामाजिक जीवन उसे अधिक विकास के लिए प्रेरणा देता रहता है। वर्तमान युग विकसित सामाजिक जीवन का युग है। आज का मनुष्य नागरिक गुणों से पूर्ण माना जाता है। सभी राष्ट्रों ने कुछ सिद्धान्तों का निर्माण कर दिया है जिनके अनुसार व्यक्ति को अनेक राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों की प्राप्ति होती है।
राज्य और समाज की उन्नति के लिए उसमें कुछ कर्त्तव्य भी होते हैं, जिनका उसे पालन करना पड़ता है। इस प्रकार सामाजिक जीवन में नागरिक कर्तव्य और अधिकारो की जानकारी महत्वपूर्ण है।नागरिक की व्याख्या-नागरिक शब्द 'नगर' से बना है जिसका अर्थ है-नगर वाला या नगर में रहने वाला।
'नगर के निवासी' अधिक चतुर और सभ्य का भी प्रकाशन करते हैं। प्राचीन काल में नगर-राज्य हुआ करते थे। जहाँ एक मुख्य नगर (राजधानी) में आस-पास के प्रदेश उस नगर-राज्य में सम्मिलित किए जाते थे। उस नगर में रहने वालों में से अधिकांश का सम्बन्ध राजनीति से होता था।
इसलिए नागरिक में राजनीतिक ज्ञान भी माना जाता है। लेकिन वर्तमान युग में नागरिक किसी देश के उन निवासियों को माना जाता है जिन्हें उस राज्य की सरकार द्वारा राजनैतिक अधिकार की प्राप्ति होती है तथा जिनका उद्देश्य समाज के प्रति कर्तव्य माना जाता है।
विस्तार में, किसी देश का वह व्यक्ति नागरिक माना जाता है, जिन्हें उस राज्य के नागरिक अधिकार प्राप्त हों। नागरिक अधिकार के कुछ कर्त्तव्य होते हैं जिनका उन्हें पालन करना पड़ता है। नागरिक के अधिकार-भिन्न-भिन्न देशों में नागरिकों को भिन्न-भिन्न अधिकारों की प्राप्ति होती है। उसके अधिकार दो प्रकार के होते हैं-मूल अधिकार तथा विशेष अधिकार।
वर्तमान युग में देश की सरकारें अपने नागरिकों को मूल अधिकारों को प्रदान करती हैं। ये मल अधिकार इस प्रकार हैं-सभी नागरिकों को परिवार बनाकर जीवन-यापन करने का अधिकार है। प्रत्येक प्राणी में जीवित रहने की सबसे अधिक इच्छा होती है। प्राकृतिक इच्छा की पूर्ति का अधिकार सभी सरकारें देती हैं।
सरकारें, नागरिक जीवन को अपनी सम्पत्ति मानती हैं इसलिए उसकी रक्षा की व्यवस्था करती हैं। प्राणी मात्र ही दूसरी प्रबल प्रवृत्ति प्रजनन सम्बन्धी है। इसके लिए मानव समाज ने व्यवस्थित विधान बनाया है, जिसके अनुसार मनुष्य विवाह करके अपने परिवार में बाल-बच्चों के साथ रहना चाहता है।
अतः सभी सरकारें अपने नागरिकों को यह अधिकार भी देती हैं। राज्य का निर्माण मनुष्य ने अपनी रक्षा तथा शत्रुओं का विनाश करने के लिये किया है इसलिये उसे विभिन्न प्रकार के कर देने पड़ते हैं। अतः सभी नागरिकों को राज्य से जन-धन की रक्षा पाने का अधिकार है।
नागरिकों की रक्षा करना तथा शान्ति व्यवस्था बनाए रखना सरकार का महत्वपूर्ण कर्तव्य है। प्रत्येक नागरिक बाहरी आक्रमणों से तथा अराजकता से सुरक्षित होने का अधिकारी होता है। प्रत्येक नागरिक को धन कमाने तथा अपनी इच्छानुसार व्यय करने का अधिकार प्राप्त होता है। यद्यपि साम्यवादी देशों में इस अधिकार को सीमित कर दिया गया है।
राज्य एक सार्वजनिक संस्था है इसलिए राज्य से निष्पक्ष न्याय पाने का अधिकार नागरिक को होता है। राज्य के विधि-विधान के सम्मुख कोई भेदभाव नहीं रहता, सभी नागरिक समान होते हैं, अतः उसे निष्पक्ष रूप से न्याय करना आवश्यक होता है। सभी नागरिकों को स्वतन्त्र रूप से रहने का और पूजा-पाठ करने का अधिकार होता है।
प्रत्येक व्यक्ति को राज्य के द्वारा यह स्वतन्त्रता प्राप्त है कि वह अपने विश्वास के अनुसार ईश्वर की आराधना करे तथा धार्मिक संस्थाओं की सदस्यता स्वीकार करे। प्रत्येक नागरिक को राजकीय सार्वजनिक वस्तुओं के उपयोग करने का समान रूप से अधिकार प्राप्त होता है।
जैसे सरकारी सड़कों पर चलना, औषधालयों से औषधि प्राप्त करने का, डाक विभाग से पत्र, मनीऑर्डर, पार्सल आदि भेजने, रेलों, जहाजों आदि से यात्रा करने के अधिकार सभी नागरिकों को प्राप्त होते हैं, किन्तु उनके इन कार्यों द्वारा किसी स्वतन्त्रता पर या सरकार के प्रभुत्व पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
हानि पहुंचने तथा अनुचित कार्यों को सहन नहीं कर सकती। राजकीय विद्यालयों में तथा अन्य शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार सभी नागरिकों मिलता है। इस प्रकार से सरकार अपने नागरिकों को मूल अधिकारों की प्राप्ति कराती है। उन्हें भौतिक तथा आध्यात्मिक विकास करने में सहायता प्रदान करती है।
नागरिक स्वतन्त्रता तभी तक प्राप्त होती है, जब तक वह दूसरे नागरिक के उचित जीवन-क्रम में कोई बाधा उत्पन्न न करे। लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में नागरिक को और अधिक अधिकारों की प्राप्ति होती है। प्रत्येक नागरिक को राज्य के कार्यों के लिए प्रतिनिधि चुनने एवं चुने जाने का अधिकार होता है।
इसके लिए स्वेच्छा से नागरिक राजनैतिक दल बना सकते हैं और उसके सदस्यों की संख्या बढ़ा सकते हैं। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से सभी नागरिक सरकार के संगठन में भागी होते हैं। यदि कोई व्यक्ति योग्य है और सच्चा है तो वह भी देश का प्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति तक बन सकता है।
हर सरकार में सार्वजनिक मन्दिरों और पूजाघरों में सभी को जाने का अधिकार होता है। नागरिक के कर्त्तव्य-नागरिकों के अधिकारों के अतिरिक्त अनेक कर्त्तव्य भी होते हैं। नागरिकों का पहला कर्त्तव्य है-सरकारी कानून का पालन करना तथा अपने किसी भी कार्य से दूसरों के कार्यों व स्वतन्त्रता में बाधा न डालना। कानून का पालन न करने वाला नागरिक सच्चा नागरिक नहीं है और वह दण्ड का अधिकारी है।
दूसरा कर्त्तव्य है-सार्वजनिक तथा राजकीय सम्पत्ति की रक्षा करना तथा उस सम्पत्ति से उचित लाभ उठाना। यदि उसे बस में बैठकर यात्रा करने का अधिकार है तो बस को किसी भी तरह से हानि न पहुंचाकर उसकी रक्षा करना भी नागरिक का कर्त्तव्य हो जाता है। तीस कर्तव्य है-विघटनकारी कार्यवाही न करना है।
सरकारी कर और लगान का देना भी उसका कर्त्तव्य है। सरकारी सेना में भर्ती होना तथा देश की रक्षा का उपाय करना, नागरिक को सहयोग देना आदि उसके असंख्य कर्त्तव्य हैं। अच्छे नागरिक के गुण-इन कर्तव्यों का पालन करना तथा अपनी बुद्धि और योग्यतानुसार राष्ट्र की सेवा करना, समाज-कल्याण करना अच्छे नागरिक के गुण हैं।
अपनी उन्नति के साथ-साथ सार्वजनिक उन्नति में योग देना अच्छे नागरिक के गुण हैं। अच्छे नागरिक राष्ट्र की सम्पत्ति हैं। अच्छे नागरिक से राष्ट्र व समाज का कल्याण होता है। उपसंहार-सभी स्वतन्त्र देशों के नागरिक ही देश की व्यवस्था को चलाते हैं।
उनकी कर्तव्यपरायणता, बुद्धिमत्ता तथा परोपकार की भावना से ही राष्ट्र का विकास होता है। आज प्रजातन्त्र शासनों में नागरिकों के दायित्व अधिक हो गए हैं क्योंकि इस प्रणाली में नागरिक शासन होता है। राष्ट्र के विकास व समाज के कल्याण में अच्छे नागरिक का सहयोग होता है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।