नर हो न निराश करो मन को पर हिंदी निबंध | Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko Par Hindi Nibandh

 

नर हो न निराश करो मन को पर हिंदी निबंध | Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko Par Hindi Nibandh


नमस्कार  दोस्तों आज हम  नर हो न निराश करो मन को  इस विषय पर निबंध जानेंगे। मनुष्य के बारे में कहा गया है कि वह एक समझदार प्राणी है। मनुष्य सोच-समझ सकता है। अन्य प्राणियों में यह समझ-बूझ नहीं होती। क्योंकि सोचने-समझने के लिए जिस मन-मस्तिष्क की जरूरत होती हैं, 


वह अन्य पशु-प्राणियों में नहीं होता। यह मन ही मनुष्य की अपरिमित शक्ति का कोष है। प्रत्यक्ष रूप में दिखाई न देते हुए भी, हमारे शरीर का वह एक महत्त्वपूर्ण अंग है। मानव मन बडा सुंदर है और विचित्र भी। निश्चित रूप से वह एक वरदान है, परंतु है बडा चंचल! उसके अनेक रंग होते हैं। 


वह पल-पल बदलता रहता है। उसकी गति और शक्ति दोनों आसीम हैं। उसे वश में करना वैसे कठिन काम है। मनुष्य यदि विवेकवान हो तभी वह मन को अपने वश में कर सकता है। मन जब वश में रहता है। तो शक्ति भी मानो अपने वश में रहती है।


मनुष्य के सुख-दु:ख का एकमात्र कारण है उसका मन ! आशा और निराशा ये मन के दो पहलू हैं। इन्हीं दो पहलूओं पर मनुष्य का सुख और दुःख निर्भर करता है। मानव को अपने जीवन में सदा संघर्ष करना पडता है। इन संघर्षों के कारण उसका जीवन हमेशा गतिमान रहता है। 


अगर हमारा मन उत्साह और आशा से भरा हो तो कठिन से कठिन कामों में भी सफलता अवश्य मिलती है। परंतु मन अगर निराश हो, वह हमें साथ नहीं देता हो तब आसान कार्य भी पहाड जैसे दुर्धर बन जाते हैं। मन का यह नैराश्य, मायूसी मनुष्य के लिए घातक है।


तन के माध्यम से ही मन व्यक्त होता है। मन जैसा चाहता है, शरीर वैसा करता है। इस जीवन में मनुष्य को प्रतिकूल स्थितियों से लडना पडता है। अनेक संकटों से मुकाबला करना पडता है, या कभी समझौता। ऐसी स्थिति में मनुष्य का मन यदि निराश हो गया, वह हिम्मत हार बैठा तो उसके शरीर को थकते देर नहीं लगती। उसे हारते देर नहीं लगती। 


संघर्षों से जूझते समय हमारा मन अगर साथ देता है, हिम्मत नहीं हारता तो संसार में हमारी विजय निश्चित है। कबीर ने इसलिए कहा है। 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।' संसार में ऐसे अनेक महामानव हुए है, जिन्होंने कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। 


मन को कभी निराश नहीं होने दिया। महात्मा गांधी का शरीर दुर्बल होकर भी अपनी मानसिक शक्ति के बल पर वे महात्मा बन गए। अत्यंत शक्तिमान अंग्रेजों को मन की ताकत से पराजित किया। नेपोलियन का आत्मविश्वास और उसके मन की दृढता भी अनुकरणीय है।


आल्प्स की विशालता को देखकर उसकी सेना का मन कुंठित हो गया। किंतु नेपोलियन ने कहा'आल्प्स है ही नहीं' और सचमुच आल्प्स ने उसकी दृढता के सामने अपना सिर झुका लिया। उसकी सेना आल्प्स को रौंदती हुई पार हो गई। महाराणा प्रताप मुगलों से युद्ध हार गए, पर फिर भी उनका मन न हारा। जंगलों में भटकते हुए भी महाराणा ने अकबर को चैन से सोने नहीं दिया।


हमें मन की शक्ति को पहचानकर उसको दृढ बनाना चाहिए। उसे सत्कर्म में लगाना चाहिए। एकाग्रता से मन की दृढता बढती है। मन को कभी निराश नहीं होने देना चाहिए। उसे आशावान बनाना चाहिए। निराशा का अंधकार हट जाने से हमारी उलझनें कभी न कभी सुलझ जायेंगी ही। उसी समय आनंद और प्रसन्नता का सूर्य हमारे जीवन में उदित होगा। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।