नशा और युवा वर्ग पर निबंध | Nasha aur yuva varg essay in hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम नशा और युवा वर्ग इस विषय पर निबंध जानेंगे। वस्तुतः आज समाज में मद्यपान की अकेली समस्या नहीं है, अपितु अन्य नशीले मादक पदार्थों; जैसे अफीम, गाँजा, चरस, कोकीन, भाँग, एल०एस०डी० तथा अन्य नशा उत्पन्न करने वाली दवायें व जड़ी-बूटियाँ इत्यादि का प्रयोग अधिक मात्रा में होने लगा है।
अधिक मात्रा में नशीले पदार्थों का सेवन एक चिन्ता का विषय बना हुआ है। यूरोप, अमेरिका तथा एशिया के अनेक देश इससे प्रभावित हैं। प्रायः ऐसा देखा गया है कि यदि एक बार इस प्रकार के मादक द्रव्य के व्यसन की व्यक्ति को आदत पड़ पाती है तो उसे छोड़ना बहुत कठिन होता है।
नशीली वस्तुओं के सेवन का इतिहास काफी प्राचीन है तथा यूरोप, एशिया के सुदूरवर्ती पूर्वी और पश्चिमी देशों में इसका प्रयोग किसी-न-किसी रूप में अवश्य होता रहा है। उदाहरणार्थ-भारत में मादक द्रव्यों का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता आया है।
हिन्दू ग्रन्थों में सोम रस नामक मादक द्रव्य का तथा भाँग का औषधि रूप में प्रयोग होने का उल्लेख है। भाँग को शिवजी का प्रिय पेय माना गया है। शिवरात्रि वाले दिन अधिकतर लोग भाँग का सेवन करते हैं। इस प्रकार कई मादक द्रव्यों के प्रयोग को भारत में कुछ सीमा तक धार्मिक स्वीकृति भी मिली हुई है।
हमारे देश में होली के त्यौहार पर भाँग का प्रयोग बहुधा होता है। यहाँ साधु-सन्त तथा महात्मा लोग गाँजा, चरस तथा कोकीन बहुधा प्रयोग करते हैं। भारत में अफीम का प्रयोग भी अधिक हो गया है। कुछ लोग इसे औषधि के रूप में प्रयोग करते हैं। केवल भारत में ही नहीं वरन् पूरे विश्व में अफीम का प्रयोग बढ़ गया है।
पिछले एक दशक में भारत में नशीले पदार्थों का प्रयोग बढ़ गया है। नशीले पदार्थों में हेरोइन, मार्फीन, अफीम, मैन्ड्रिक्स, कोकीन आदि को सम्मिलित किया जाता है। अब इसमें स्मैक भी जुड़ गया है। वास्तव में नशीली दवायें फेरीवालों द्वारा बेची जाती हैं।
जिन्होंने अपने ऐजेण्टों का विशाल एवं अच्छा-खासा जाल बिछा रखा है। ये व्यक्ति ही हमारे अनेक होनहार युवकों का जीवन नष्ट करने के लिये उत्तरदायी हैं। हमारी भावी पीढ़ी इन नशीले पदार्थों के सेवन से अपंग बनायी जा रही है।
सन् 1986 में भारतीय चिकित्सालय अनुसंधान परिषद् द्वारा किये गये सर्वेक्षण से हमें यह पता चलता है कि अब प्रतिभाशाली तथा अच्छे छात्र सामान्य तथा मन्द बुद्धि वाले छात्रों की अपेक्षा इन पदार्थों का अधिक सेवन करते हैं।
नशीले पदार्थों का अत्यधिक सेवन परीक्षाओं के समय ही पाया गया है। अधिकतर छात्र इन पदार्थों का सेवन थकान दूर करने या तनाव कम करने के लिये करते हैं। कुछ छात्र यह सोचकर इन पदार्थों का सेवन करते हैं कि इन्हें लेने से याददाश्त तेज होती है।
सर्वेक्षण के अनुसार बड़े शहरों के विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में 25% छात्र नशीले पदार्थों का सेवन करते पाये गये। यह लत सर्वाधिक 35% दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों में पायी गयी। यह प्रतिशत उन शिक्षण संस्थाओं में और अधिक है जहाँ शिक्षा का स्तर अपेक्षाकृत अच्छा है तथा जहाँ छात्रों को अधिक छूट मिली हुई है।
वास्तव में स्कूलों में नशीले पदार्थों का सेवन चिन्ता का विषय बनता जा रहा है। यह बात पब्लिक स्कूलों के छात्रों में अधिक पायी जाती है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग प्रो० पी०एन० गोविल के अनुसार, नशे की लत एक प्रमुख कारण शिक्षकों तथा छात्रों के बीच परम्परागत घनिष्ठ तथा वैयक्तिक सम्बंधों का अभाव है। आपके अनुसार समाज का तेजी से बदलता परिवेश भी इसके लिये बहुत हद तक जिम्मेदार है।
आजकल तो आप अगर समाज में अपनी इज्जत कराना चाहते हैं तो आपको शराब और सिगरेट तो पीनी ही होगी साथ ही आपका कहना है कि मादक औषधियाँ आसानी से मिल जाती हैं।
अगर मादक द्रव्यों का सेवन सीमित मात्रा में सीमित अवसरों पर ही किया जाये तो इसके बुरे परिणाम नहीं होते। अफीम का प्रयोग सातवीं शताब्दी में शायद मुस्लिम व्यापारियों द्वारा शुरू हुआ था। मुस्लिम राज्यकाल में भारत में अफीम, चरस, गाँजा इत्यादि नशीले पदार्थों का उपयोग काफी बढ़ गया था।
अकबर के समय में तथा सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में कुछ वर्ग के व्यक्तियों में मादक दवाइयों के सेवन का उल्लेख मिलता है, परन्तु आजकल नशीली औषधियों का सेवन अधिक हो गया है, क्योंकि शिक्षण वर्ग में विशेषकर छात्र तथा छात्राओं में इसका प्रयोग बहुत अधिक बढ़ गया है।
हमारे देश में नशीले पदार्थों की समस्या पर जनता का ध्यान तब अधिक गया जब पुलिस द्वारा गोवा, मुम्बई और दिल्ली में छापे मारे जाने पर विभिन्न प्रकार के नशीले पदार्थ पकड़े गये। पटियाला जिले में आतंकवादियों के पास से बड़ी मात्रा में स्मैक बरामद हुई।
कुछ समय बाद पुलिस ने अमृतसर से दिल्ली जा रहा एक ट्रक पकड़ा जिसमें 110 थैलों में स्मैक भरी हुई थी। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में जिसकी कीमत 22 करोड़ रुपये आँकी गई। इस प्रकार स्पष्ट है कि हमारे देश में नशीले पदार्थों का प्रचलन निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है।
भारत सरकार भी विशेष रूप से नवयुवकों का नशीले पदार्थों के सेवन से चिन्तित है और उसने अस्पतालों और अन्य स्थानों पर नशीले पदार्थों से मुक्ति के लिये केन्द्र खोलकर सुधार करने के अनेक प्रयास किये हैं।
दिशा में दिल्ली, मुम्बई तथा अन्य महानगरों में अनेक स्वयंसेवी संस्थायें भी अधिक प्रयास कर रही हैं। आकशवाणी तथा दूरदर्शन, नुक्कड़ सभाओं, नाटकों द्वारा नशीले पदार्थों के सेवन के विरोध में चेतना जाग्रत करने के प्रयास जारी हैं। वास्तव में यदि हम सच्चे मन से चाहते हैं
कि हमारा देश सर्वतोन्मुखी प्रगति करे, शिक्षा का पूर्ण विकास हो और हमारे नवयुवक कार्यशील बनें तो हमें नशीले पदार्थों के सेवन पर नियन्त्रण करना होगा।
भारतीय समाज के प्रत्येक नागरिक में यह चेतना जगानी होगी कि नशीले पदार्थों का सेवन जलते हुए अग्निकाण्ड या तूफानी नदी की ओर लपकने से भी अधिक खतरनाक है, क्योंकि इससे शरीर और आत्मा दोनों का ही नाश हो जाता है।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।