परीक्षा भवन में तीन घंटे हिंदी निबंध | pariksha se pehle essay in hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम परीक्षा भवन में तीन घंटे हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे।
विद्यार्थी नित्य विद्यालय जाते हैं। वहाँ के वातावरण में उन्हें कोई नवीनता नहीं दिखाई देती, किंतु परीक्षा के दिन विद्यालय का रंग ही बदल जाता है! दसवीं की प्रीलिमिनरी परीक्षा चल रही थी। उस दिन अंग्रेजी का प्रश्नपत्र था। विदेशियों की इस भाषा से मेरी पुरानी दुश्मनी है। समय होते ही भगवान का नाम लेकर और दही का सगुन करके मैं घर से निकला। अंग्रेजी की पूरी पाठ्यपुस्तक को मैंने घोट-चाट डाला था। कलेजा मजबूत करके आगे बढ़ ही रहा था कि कमबख्त काली बिल्ली ने राह काट दी। मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई, न जाने परीक्षा में क्या होगा?
परीक्षा-भवन में पहुँचते ही घंटी बजी। सभी विद्यार्थी अपनी-अपनी जगह बैठ गए। इतने में निरीक्षक महोदय आ पहुँचे। निरीक्षक महोदय ने पहले उत्तर-पुस्तिकाएँ बाँटीं। विद्यार्थियों ने उत्तर-पुस्तिका पर अपना विषय, क्रमांक, दिनांक आदि सब लिख लिया। इतने में एक घंटी और बजी। तुरंत प्रश्नपत्र बाँट दिए गए।
प्रश्नपत्र पाकर कोई खुशी से उछल पड़ा, तो कोई उदास हो गया। काँपते हाथों से मैंने भी प्रश्नपत्र लिया। एक सरसरी नजर डालते ही मैं खुश हो गया। सभी प्रश्न मेरे तैयार किए हुए थे। एक क्षण में सभी विद्यार्थी प्रश्नों के उत्तर लिखने में तन्मय हो गए। निरीक्षक महोदय वर्ग में घूमने लगे। मेरी कलम बिजली की तरह दौड़ने लगी। पहले एक घंटे में ही मैंने तीन प्रश्न हल कर दिए। जरा आँख उठाकर देखा, तो जो विद्यार्थी बारूद से भरी हुई तोप की तरह तैयार होकर आए थे, उनकी कलम सरसराती हुई पन्ने भरे जा रही थी।
निरंतर दूरदर्शन के सामने बैठे रहनेवालों को ऐसा लग रहा था, जैसे कोई भी प्रश्न उनके पाठ्यक्रम का नहीं है। कुछ दाँव-पेच के खिलाड़ी आगेवाले विद्यार्थी के कंधे पर बार-बार अपनी उँगली से संकेत कर रहे थे। एक साहसी विद्यार्थी मार्गदर्शिका के पन्ने फाड़कर ले आया था, मगर निरीक्षक की तीखी दृष्टि का शिकार हो गया। उसकी सारी योजना पर पानी फिर गया !
देखते-ही-देखते दो घंटे पूरे हो गए। साथ-साथ मेरी लिखने की गति भी बढ़ी। बहुतों ने 'बहुत कुछ' कर लिया था और बहुतों का 'बहुत कुछ ' बाकी रह गया था। आधा घंटा और बीत गया। जिन्होंने पूरा प्रश्नपत्र हल कर लिया था, वे अपने उत्तरों को पुनः पढ़ रहे थे। इतने में चेतावनी का घंटा बजा। 'जब तक साँस, तब तक आस' ऐसा सोचकर मैं लिखता ही रहा। मैंने अंतिम प्रश्न पूरा लिख लिया। इतने में समय भी पूरा हो गया। सबने अपनी-अपनी 'तकदीर' निरीक्षक के हवाले कर दी, किसी ने मन से और किसी ने बेमन से।
सचमुच, परीक्षा के ये तीन घंटे कितनों को रुलाते हैं और कितनों को हँसाते हैं ! मैं खुश होता हुआ परीक्षा-भवन से बाहर निकलकर घर की ओर चल पड़ा। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताएगा।