फटी पुस्तक की आत्मकथा निबंध | phati pustak ki atmakatha essay in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम फटी पुस्तक की आत्मकथा इस विषय पर निबंध जानेंगे। बहुत दिनों से मेरी इच्छा थी कि मैं किसी के आगे अपना दिल खोलूँ। अच्छा हुआ, मैं आप जैसे सहृदय व्यक्ति के हाथों में आई और मुझे अपने मन की दो बातें कहने का मौका मिला।
मेरे जन्म की कथा बड़ी दिलचस्प है। सबसे पहले एक विद्वान लेखक ने बहुत परिश्रम से मुझे लिखा। इसके बाद लेखक महोदय मुझे एक प्रकाशक के पास ले गए। प्रकाशकजी ने मुझे अपने प्रेस में भेजा। मशीनों की खटखट ने मेरे कान बहरे कर दिए।
न जाने कितने अक्षरों को जोड़-जोड़कर मुझे नया रूप दिया गया। इसके बाद मुझे मशीनों के नीचे कुचला गया। उस समय की पीड़ा याद आते ही आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। फिर तो मेरी देह में सुइयाँ लगाई गईं और मरहम-सी चीज से मुझ पर मालिश की गई और मुझपर सुंदर मुखपृष्ठ लगाया गया। इसके बाद मेरे रूप का कहना ही क्या ! फिर मुझे एक दुकान की अलमारी में रखा गया।
आखिर, एक दिन मैंने उस दुकान से बिदा ली। मेरे मालिक ने मुझे बड़े यत्न से रखा। वह मुझे बड़े ध्यान से पढ़ता और हर पन्ने पर कुछ निशान करता जाता था। कुछ दिन उसके पास रहने के बाद मैं उसके एक मित्र के पास पहुंच गई।
उसने तो मुझे अपनी प्रिय सहेली ही बना लिया। उसने अपनी पेन्सिल से उन स्थानों पर निशान लगा दिए, जो उसे बहुत पसंद आए। मैंने भी सोचा, चलो कोई कदरदान तो मिला। पर दुर्भाग्य से एक दिन वह मुझे बस में भूल गया। तब से मेरी दुर्दशा का आरंभ हुआ।
मैं एक बुद्धू के पल्ले पड़ी। उसने मेरे दो-चार पन्ने पढ़े और मुझे एक ओर पटक दिया। पर उसकी पत्नी शायद अधिक पढ़ी-लिखी और समझदार थी। कुछ पंक्तियों को पढ़ते ही उसने मुझे अपने दिल से लगा लिया। लेकिन अब दुर्भाग्य मेरे पीछे पड़ गया था।
एक दिन संयोग से मैं एक रद्दीवाले के यहाँ पहुँच गई। उसने मेरा सुंदर मुखपृष्ठ फाड़कर अलग कर दिया। हाय ! कैसा निर्दय था वह ! पर मेरी किस्मत जोरदार थी इसलिए मैं आपके पास पहुँच गई। आपने मुझे उस नरक से उबारकर मुझ पर बड़ा उपकार किया है।
दुनिया में रहकर मैंने कई पत्थर जैसे कठोर दिल देखे हैं और उन लोगों का प्यार भी पाया है, जो फूलों की सुंदरता और चाँद की मधुरता को अपने दिल में बसाए रहते हैं। कहीं मुझे शीतल छाया के आनंद का अनुभव हुआ है, तो कहीं कड़ी धूप की जलन का।
आज मैं बहुत खुशनसीब हूँ, आपके पास आकर मैंने अपनी शक्ति के अनुसार मनुष्य की सेवा की, उसे आनंद और ज्ञान दिया। आगे भी इसी तरह सेवा करती रहूँगी। पर अब मेरी हड्डियाँ ढीली हो गई हैं। मेरे पन्ने-पन्ने पर स्याही के दाग, पेन्सिल की लकीरें और व्यक्तियों के नाम हैं। फिर भी यदि मेरे इस जीवन से आपका कुछ कल्याण हो सका तो मैं अपने आपको धन्य समअँगी।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।