फूल की आत्मकथा पर निबंध | Phool ki Atmakatha in Hindi Essay
नमस्कार दोस्तों आज हम फूल की आत्मकथा इस
विषय पर हिंदी निबंध जानेंगे। मैं गुलाब का फूल हूँ। मेरा जन्म जीजामाता
उद्यान में एक पौधे पर हुआ था। वहाँ अन्य पौधों पर मेरे और भी अनेक साथी
थे। सबका अपना-अपना रूप-रंग और सबकी अपनी-अपनी सुंदरता थी।
पहले तो मैं बहुत छोटा था। बड़ा
होने पर लोग मुझे 'फूल' कहने लगे। मेरा बचपन उसी उद्यान में बीता। मैं
अपनी माँ की गोद में हवा के झोंकों के साथ झूमता रहता था। कितनी आनंदभरी थी
बचपन की वह प्यारी दुनिया!
जब मैं फूल बना, तो मेरे रूप-रंग
की शान ही निराली हो गई। जो भी मुझे देखता, बस देखता ही रह जाता। मेरी
सुगंध और सुंदरता लोगों पर जादू जैसा असर करती थी। मधु के लोभी भौरे मुझपर
मँडराते रहते थे। तितलियाँ भी मेरे आसपास ही रहना चाहती थीं। सचमुच मेरे
जीवन का वह सुनहरा समय था।
मगर परिवर्तन जीवन का एक
नियम है। मेरे जीवन में भी भारी परिवर्तन हुआ। एक दिन सुबह माली बगीचे में
आया। उसने बहुत निर्दयता से मुझे मेरी माँ की गोद से अलग कर दिया। उसने
मुझे तोड़कर एक टोकरी मे डाल दिया। इसी प्रकार और भी कई फूल तोड़कर उसने
टोकरी में डाले।
इसके बाद माली अन्य फूलों के साथ
मुझे बाजार में ले गया। वहाँ एक आदमी मुझ पर लटू हो गया। वह एक पुजारी था।
उसने मुझे खरीद लिया। मंदिर में पूजा के समय उसने मुझे भगवान की मूर्ति पर
चढ़ा दिया। भगवान के मस्तक पर पहुँचकर मैं फूला नहीं समाया।
मैं अपने भाग्य पर इठला रहा था।
पर हाय री किस्मत ! कुछ ही मिनट बीते थे कि मेरी तकदीर बदल गई। पुजारी ने
मुझे भगवान के मस्तक से उठाया और एक भक्त को दे दिया। मुझे पाकर उसकी खुशी
का ठिकाना नहीं रहा। उसने मुझे अपने सिर-आँखों से लगा लिया। घर पहुँचकर
उसने मुझे अपनी अलमारी पर रख दिया।
दूसरे दिन पड़ा-पड़ा मैं
मुरझा गया। मेरा रूप-रंग उतर गया था। मेरी खुशबू भी जाती रही थी। सफाई
करते समय नौकर ने मुझे उठाकर कचरे की टोकरी में डाल दिया। वह मुझे उठाकर
कूड़ेदान में फेंक आया।
तब से मैं यहीं पड़ा-पड़ा
अपनी किस्मत पर रो रहा हूँ। अब तो बस एक ही इच्छा है कि इस जीवन का अंत हो
जाए और किसी फुलवारी में मेरा फिर से जन्म हो। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा
लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।