प्रदर्शनी में एक घंटा हिंदी निबंध | pradarshani me ek ghanta essay in hindi

 

प्रदर्शनी में एक घंटा हिंदी निबंध | pradarshani me ek ghanta essay in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम प्रदर्शनी में एक घंटा हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। 

हमारे शहर में कई दिनों से 'मिलेनियम इंडिया' प्रदर्शनी लगी हुई थी। पिछले शनिवार की शाम को मैं भी अपने एक मित्र के साथ उसे देखने गया।

प्रदर्शनी प्रगति मैदान में लगी थी। उसका विशाल और भव्य प्रवेशद्वार देखते ही बनता था। ऊपरी भाग में धनुषाकार में 'MILLENNIUM INDIA' नाम बिजली के बल्बों की रोशनी में जगमगा रहा था। प्रवेश-द्वार की एक ओर एक किसान तथा दूसरी ओर एक फौजी जवान के कट-आउट रखे हुए थे। प्रदर्शनी के बाहर एक कतार में खड़े होकर हमने टिकट लिए और हम प्रदर्शनी के भीतर गए।

प्रदर्शनी में अलग-अलग प्रांतों के अपने-अपने मंडप थे। प्रत्येक मंडप का प्रवेशद्वार उस प्रदेश की किसी-न-किसी विशेषता को सूचित करता था। महाराष्ट्र मंडप के प्रवेशद्वार पर अजंता और एलोरा के दृश्य ध्यान खींच रहे थे। मंडप में विविध नमूनों, नक्शों और चित्रों द्वारा महाराष्ट्र के विकास की झलक प्रस्तुत की गई थी। 'कोंकण रेलवे', विविध सिंचाई योजनाएँ और बाँध बड़े सुंदर ढंग से दिखाए गए थे। गुजरात मंडप में सरदार सरोवर बाँध तथा अन्य बाँधों के बारे में हमें अच्छी जानकारी मिली। इसी प्रकार आंध्र, कर्नाटक, केरल, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों के मंडप उनकी प्रगति का परिचय दे रहे थे।

प्रत्येक मंडप में उस राज्य के कला-कौशल की वस्तुओं की बिक्री भी हो रही थी। कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के मंडपों में लोग कंबलों, स्वेटरों तथा शालों में दिलचस्पी ले रहे थे। मैंने अपनी माँ के लिए एक शाल खरीदा। मेरे मित्र ने फरवाली एक कश्मीरी टोपी खरीदी।


भारत मंडप में स्वतंत्र भारत में बननेवाली मशीनों, खेती के औजारों, रेलवे इंजनों तथा विमानों के प्रतिरूप (Models) रखे गए थे। स्वदेशी अस्त्र-शस्त्रों, 'आकाश', 'पृथ्वी', 'अग्नि' जैसे स्वदेशी प्रक्षेपास्त्रों तथा उपग्रहों के मोडेलों को लोग बडी उत्सकता से देख रहे थे। नए टी. वी. सेटों, धुलाई की मशीनों, टेलीफोनों आदि भी दिलचस्पी के केंद्र बने हुए थे।

प्रदर्शनी में मनोरंजन तथा खान-पान की भी अच्छी व्यवस्था थी। चरखी. मेरी-गो-राउंड, निशानेबाजी, मौत का कुआँ, जादू के खेल किशोरों तथा बच्चों को लुभा रहे थे। खाने-पीने के स्थलों पर भी काफी भीड़ थी। हमने गरम-गरम आलूबड़े खाए और एक-एक गिलास लस्सी पी।

हमने लगभग एक घंटे तक प्रदर्शनी का आनंद लिया। उसमें से मनोरंजन और ज्ञानवृद्धि का लाभ लेकर हम घर लौट पड़े।

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