मेरी प्रिय पुस्तक रामचरितमानस पर निबंध | RAMCHARITMANAS MY FAVOURITE BOOK ESSAY IN HINDI
नमस्कार दोस्तों आज हम मेरी प्रिय पुस्तक रामचरितमानस इस विषय पर निबंध जानेंगे। रामचरित मानस' के रचयिता हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि कुल शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास हैं। इनका यह ग्रंथ भारत की एक लोक भाषा अवधी' में है। तुलसीदास का जन्म संवत् 1554 में हुआ था। इन्होंने रामचरित मानस के विषय में स्वयं लिखा है
"संवत् सोरह सौ इकतीसा, कहऊं कथा हरिपद धरि सीसा।
नौमी भौमवार मधुयासा, अवधपुरी यह चरित प्रकाशा॥"
अर्थात् तुलसीदास ने संवत् 1631 में अयोध्या में चैत्र मास की नवमी तिथि 'मंगलवार' के दिन इस ग्रंथ को लिखना प्रारम्भ किया।रामचरित मानस एक महत्त्वपूर्ण रचना है। यह आर्य-धर्म की प्रज्वलित दीपशिखा है; भक्ति की निर्मल धारा है; गृहस्थ जीवन की पथ प्रदर्शिका है;
समाज और राजनीति शास्त्र की टिप्पणी है; काव्य की देदीप्यमान मणि है। रामकथा का प्रचार तुलसी से पहले भी था, लेकिन तुलसी की रामकथा के द्वारा जितनी अधिक शक्ति जनता को मिली उतनी पहले कभी नहीं मिली थी।
रामचरित मानस ने जनता को सात्विक, कर्मशील और धर्मशील ही नहीं बनाया बल्कि राम के कल्याणकारी स्वरूप का यथार्थ चित्रण कर राम को भी अमर, प्रात:स्मरणीय, पूजनीय और जन-जन का कण्ठहार और हृदय-सम्राट बना दिया।
मानस हमारे जीवन को ऊंचा उठाने में बहुत सहायक सिद्ध हुआ है। इसमें आदर्श चरित्रों का जैसा सुन्दर चित्रण हुआ है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। नायक राम के चरित्र में शील, शक्ति, सौंदर्य और मर्यादा का अपूर्व और मनोहर रीति से सन्निवेश हुआ है।
श्री राम तुलसी की कला से सदाचार, नीति और लोक-मर्यादा के आदर्श स्तम्भ बन सके हैं। इनके महान चरित्र को जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में डालकर ग्रंथकार ने यह दिखा दिया है कि वे आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श मित्र, आदर्श वीर, शरणागत वत्सल, धर्म प्रवण मानव हैं, विश्व बन्धु हैं। वे विश्व धर्म प्रतिमूर्ति हैं।
मानस के पात्र आदर्श ही नहीं हैं, उनके पारस्परिक सम्बन्ध भीअनुकरणीय हैं। मानस में पिता-पुत्र, पति-पत्नी, भाई-भाई, गुरु-शिष्य, स्वामीसेवक आदि सम्बन्धों का निर्वाह आदर्श रूप में किया गया है। अगर मानस के पात्रों के आचरण के अनुकूल हम अपना आचरण बना लें तो हमारे परिवार और समाज में लगे विषाक्त कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए रामबाण प्रमाणित हो सकते हैं। उदाहरण द्रष्टव्य हैंगुरु भक्ति
गुरु वशिष्ठ कुल पूज्य हमारे।
इनकी कृपा दनुज हम मारे॥
मातृ-पितृ भक्ति सुनु जननी सुत सोई बड़ भागी।
जो पित-मातु वचन अनुरागी।
मित्र-प्रेम जो न मित्र दुःख होहिं दुखारी।
तिन्हहिं विलोकत पातक भारी॥
तुलसी का रामचरित मानस भारतीय संस्कृति का महान संरक्षक है। भारतीय दर्शन और ज्ञान के प्रमुख अध्याय यहां मिलेंगे। काव्य परम्परा से दिव्य बनी हुई यह पवित्र पुस्तक साधना, सामाजिक आदर्श और सफल विश्वासों की पुस्तक है।
इसमें नाश के खण्डहर में सृजन के फूल मुस्कुराते हैं; नृशंसता और दानवता के ऊपर मानवता जीत की मुहर लगाती है-यही वह सांस्कृतिक सन्देश है जो मानस की पंक्ति-पंक्ति में भी विश्वास का दीपक बुझने नहीं देगा। संघर्ष करते रहना ही मनुष्यता का श्रेष्ठ लक्षण है। रामचरित मानस संस्कृति के टूटे अवयवों को समेटने का पवित्र काव्य है। इसमें सृजन की आंतरिक क्षमता है।
रामचरित मानस की साहित्यिक महत्ता की समानता अन्य कोई रचना नहीं कर सकती। यह प्रबन्ध काव्य है। गोस्वामी जी की प्रबन्ध-पटुता इसमें पूर्ण रूप से व्यक्त हुई है। रामकथा आदि से अन्त तक अबाध गति से प्रवाहित हुई है और विभिन्न घटनाएं श्रृंखला की कड़ियों की भांति एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
कहीं भी कथा-शैथिल्य नहीं है। सफल चरित्र-चित्रण एवं संवाद भी प्रबन्ध-पटुता के अंग होते हैं। रामचरित मानस में राम, भरत, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, दशरथ, रावण, कैकेयी, कौशल्य, मंदोदरी आदि पात्र-पात्राओं के बड़े भव्य चित्रण अंकित हैं।
इसकी सर्वप्रियता का प्रमुख कारण धार्मिक विश्रृंखलित वातावरण में एकता की स्थापना करना है। मानस में धर्म-नीति के साथ राजनीति का अत्यन्त सुन्दर चित्रण मिलता है। _गोस्वामी जी प्राचीन काल से चले आ रहे सनातन धर्म के अनुयायी थे इसलिए उन्होंने वर्ण और आश्रम धर्म मुख्यतः श्रेष्ठ ठहराया है।
वे सामाजिक उत्थान तथा सामाजिक व्यवस्था के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों को अपने-अपने वर्ण, धर्मानुसार चलने का उपदेश देते हैं। उन्हें व्यक्तिगत जीवन में ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास आदि आश्रमों का अनुपालन इष्ट है।
विश्व-साहित्य का अनुपम रत्न-'रामचरित मानस' मेरी प्रिय पुस्तक है। आर्य-सभ्यता, आर्य-संस्कृति, आर्य धर्म का कोष है 'मानस'। उसने विकट परिस्थितियों में डगमगाती हिन्दू जाति की रक्षा की। सच पूछा जाए तो हिन्दुओं में नवजीवन का संचार करने वाला तथा उन्हें नीति एवं मर्यादा का पाठ पढ़ाने वाला हिन्दी साहित्य में यदि कोई ग्रंथ है तो वह 'रामचरित मानस' है।
यह उसी का प्रभाव है कि प्रत्येक हिन्दू उसके महत्त्व पर श्रद्धा करता है; सदाचार की ओर उन्मुख होता है; पूज्यजनों को मस्तक झुकाता है; विपत्ति में धैर्य रखता है। राम भक्ति का अनुसरण करता है। रामचरित मानस भारतवर्ष के सबसे अधिक पढ़े जाने वाले और सबसे अधिक लोकप्रिय ग्रंथों में है।
यह भारतवासियों द्वारा गर्व से कहा जा सकता है कि भारतीय भाषा का कोई भी ग्रंथ इतने अधिक पाठकों द्वारा सम्मानित नहीं है। केवल भारतीय विद्वान ही नहीं अनेक विदेशी विद्वान भी मानस का अध्ययन बहुत चाव से करते हैं और भाव-विभोर हो उठते हैं।
इंग्लैंण्ड, अमेरिका, फ्रांस, आयरलैंड आदि अनेक देशों के विद्वानों ने समय-समय पर रामचरित मानस की भूरि-भूरि प्रशंसा की है तथा अपनी-अपनी भाषाओं में अनुवाद किया है। गार्सादतासी, ग्रियसेन, ग्राउज, वरामिकोव जैसे विद्वानों ने मानस की प्रशंसा में सैकड़ों पृष्ठ लिख डाले।
आयरलैण्ड के फादर कामिल बुल्के ने मानस के अध्ययन हेतु अपने जीवन के लगभग पचास वर्ष समर्पित कर डाले और तब भी उन्हें तृप्ति नहीं हुई। तुलसीदास ने नर में नारायण और नारायण में नर को प्रतिष्ठित कर दिखाया।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।