शिक्षा में यात्रा का महत्व हिंदी निबंध | SHIKSHA ME YATRA KA MAHATVA HINDI NIBANDH

 

शिक्षा में यात्रा का महत्व हिंदी निबंध | SHIKSHA ME YATRA KA MAHATVA HINDI NIBANDH

नमस्कार  दोस्तों आज हम शिक्षा में यात्रा का महत्व इस विषय पर हिंदी निबंध जानेंगे। हिन्दी साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन ने ज्ञान वृद्धि में भ्रमण को महत्वपूर्ण स्थान दिया। विशेष रूप से अंग्रेज, महाद्वीप की यात्रा किये बिना अपनी शिक्षा को पूर्ण नहीं मानते थे। 


यात्रा मानव का सबसे अधिक आनन्ददायक अनुभव होता है। लोगों को हमेशा ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने, दूसरे लोगों और स्थानों को देखने से आनन्द मिलता रहा है। थॉमस फुलर का विचार है कि जो यात्रा करता है वह काफी अधिक जानता है। 


राबर्ट फ्रास्ट की यह पंक्ति की अंतिम यात्रा से पहले मुझे लम्बी यात्रा करनी है, पण्डित जवाहरलाल नेहरू की सर्वाधिक प्रिय पंक्ति थी। दुर्भाग्यवश भारत में विदेश यात्रा को कोई विशेष प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है और एक समय वह भी था जब समुद्र को पार करना अत्यधिक धर्म विरोधी कार्य माना जाता था। 


इस घटिया मनोवृत्ति ने भारत में विकास की गति को प्रभावित किया। देश के अन्दर और बाहर की यात्रा शिक्षा के लिए प्रभावशाली रूप से सहायक होती है। इससे दुनिया का अनुभव प्राप्त होता है और शिक्षा से विकसित मस्तिष्क और विचारों को कार्य रूप देने और इनके व्यावहारिक उपयोग के अवसर मिलते हैं। 


व्यवहार कुशलता, दृढ़ता, आकर्षक व्यक्तित्व और जीवंत वार्तालाप से करना कुछ ऐसे गुण हैं जो बड़े पैमाने पर यात्रा करने से उत्पन्न होते हैं। हमारे देश में प्राचीन काल एवं मध्यकाल में मेगास्थनीज, फाह्यान, ह्वेनसांग एवं इब्नबतूता सरीखे ऐतिहासिक यात्रियों ने हमारे देश की यात्रा करके हमें इस देश की सांस्कृतिक एवं शैक्षिक विरासत से भली-भांति परिचित कराया है।


कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितनी उच्च भी शिक्षा प्राप्त क्यों न हो, यदि वह भिन्न-भिन्न आदतों, भाषाओं और सामाजिक रीति-रिवाजों तथा नैतिकता वाले लोगों के साथ रहा और घूमा-फिरा न हो तो उसका अपना दृष्टिकोण संकीर्ण ही बना रहता है। 


वह अपने विचारों में कम उदार होता है और प्रायः उसका दृष्टिकोण कट्टरतापूर्ण होता है, परन्तु जिन्होंने लंबी यात्रा की होती है वे सामान्यतः उदार दृष्टिकोण के होते हैं। उनके फैसलों में परिपक्वता होती है और वे लोगों तथा उनके मन के भावों को समझने में गलती नहीं करते।


यदि पर्यटन न किया जाये तो एक हाल के लिए हिमालय तथा अन्य प्राकृतिक सौंदर्य पन्नों में सिमटकर रह जायेंगे। परन्तु यदि इन स्थानों को वास्तव में विद्यार्थियों द्वारा देखा जाता है तो भूगोल जैसा नीरस विषय भी जीवन्त और चिताकर्षक बन जाता है। 


यही बात इतिहास पर भी लागू होती है। इस समय स्कूलों में जो इतिहास पढ़ाया जाता है वह मृत राजाओं और उनके जन्म और मृत्यु की तिथियों की सूची के अतिरिक्त कुछ नहीं है, परन्तु यदि विद्यार्थियों को इतिहास के जय एवं पराजयों


अन्य प्राकृतिक इन स्थानों को वा यही बात इतिगाल जैसा नीरस स्थलों की यात्रा करने के अवसर दिये जायें तो इतिहास किसी अन्य विषय की तरह ही रोचक विषय बन जाएगा। स्वतंत्र भारत में हम कुछ अन्य भाषाओं को जानने की आवश्यकता के प्रति एकदम सजग हो गये हैं। 


किसी विदेशी भाषा को पुराने तरीके से पढ़ने में हमारा सारा जीवन निकल जाएगा फिर भी उसका पूर्ण ज्ञान होना सन्देहास्पद ही रहेगा, परन्तु किसी नई भाषा को तेजी से और अच्छी प्रकार से जानने का तरीका, चाहे यह मंहगा ही क्यों न हो, यह है कि उन लोगों के बीच रहा जाए और उनके साथ मेलजोल हो जो उस भाषा को बोलते हैं। 


अतः अंग्रेजी जानने के लिए हमें इंग्लैंड में और चीनी जानने के लिए चीन में रहना होगा। भाषा बोध राष्ट्र ज्ञान के लिए अनिवार्य है। आज के विश्व में, विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के बीच आपसी समझ-बूझ का होना परम आवश्यक है। अन्तर्राष्ट्रीय समझ-बूझ के बिना शान्ति सम्भव नहीं है।


वर्तमान समय में बढ़ती महँगाई के कारण भ्रमण करना हरेक के वश की बात नहीं है। परन्तु मन को उदार बनाने, संकीर्ण और क्षेत्रवाद के विचारों से ऊपर उठने, एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृति का विकास करने के लिए अपने देश के अन्दर और विदेशों की यात्रा करना परम आवश्यक है। 


हम “एक विश्व" के ही निवासी है और जब तक इस धरती के निवासी एक दूसरे को अच्छी प्रकार से समझ नहीं लेते तब तक विश्व के राष्ट्रों के बीच शान्ति और मित्रता होने की कोई सम्भावना नहीं। आज हम संकट की उस स्थिति में हैं जहां या तो “एक विश्व या कोई विश्व नहीं" होगा। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।