आतंकवाद पर निबंध |Terrorism Essay in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम आतंकवाद इस विषय पर निबंध जानेंगे। आतंकवाद एक ऐसा शब्द है जिसकी परिभाषा स्थान, समय, परिवेश और उद्देश्य की दृष्टि से निरन्तर बदलती रही है। एक देश, वर्ग, राष्ट्र, समूह या जाति जिसे अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए किया गया संघर्ष कहती है, दूसरी ओर उसे ही आतंकवाद के नाम से अभिहित करती है।
अतः आतंकवाद की कोई सर्वमान्य परिभाषा सम्भव नहीं है। इसके साथ ही तीन बातें और हैं जो आतंकवाद को किसी पवित्र उद्देश्य का साधक सिद्ध करती थीं (i) आतंकवाद का तात्पर्य साम्राज्यवादियों के विरुद्ध स्वतन्त्रता सेनानियों का अघोषित युद्ध होता था और उसका उद्देश्य पवित्र होता था। अतः उनको शासक वर्ग भले ही आतंकवादी कहे जनता स्वतन्त्रताकामी, त्यागी और बलिदानी कहती थी।
(ii) आतंकवादी कार्रवाइयों का तात्पर्य जन-विश्वास प्राप्त करके शत्रु पक्ष में आतंक पैदा करना और उसे अस्थिर करना होता था। इन कार्रवाइयों से निरीह जनता को भयभीत होने की आवश्यकता नहीं होती थी। (iii) कार्रवाई बड़ी सटीक, सधी और पूर्व नियोजित होती थी।
आज स्थिति बिल्कुल विपरीत है। आतंकवादी कार्रवाई किसी विशेष वर्ग के प्रति न होकर बर्बरता की प्रतीक बन गई है। अंधाधुंध गोलियां चलाकर आम जनता को आतंकित करना, निरीह लोगों की हत्या करना, जन-विश्वास प्राप्त करने की जगह, जन-आतंक पैदा करना “आतंकवाद” हो गया है। न तो इसमें प्रतिशोध का भाव है न सामूहिक उद्देश्य की प्राप्ति का लक्ष्य और न शासन तंत्र को विवश करने की स्थिति।
यही कारण है कि आतंकवाद मूलतः अपराधवाद बन गया है। आतंकवाद के मूलभूत आधार-हम आतंकवाद के मूलभूत आधार को पाँच श्रेणियों में बाँट सकते हैं(1) उद्देश्य-आतंकवाद का जन्म ही किसी उद्देश्य से होता है। आतंकवादी उद्देश्य जितना ही व्यापक होगा
उसे उतनी ही सफलता की आशा करनी चाहिए क्योंकि ऐसी स्थिति में उसे जन-समर्थन मिलता है जो उसके और उसकी कार्रवाइयों के लिये संजीवनी होता है। संगठन-उद्देश्य के बाद दूसरा स्तर संगठन का है।
जब तक सशक्त संगठन नहीं होगा तब तक आतंकवादी कार्रवाइयों का प्रभाव समग्रता के साथ नहीं पड़ सकता। जब एक देश के विभिन्न देशों में स्थित दूतावासों में एक समय ही विस्फोट होता है तो आतंक पैदा करने में एक तारतम्यता स्थापित हो जाती है।
(3) नेतृत्व-आतंकवाद का तृतीय आधार स्तम्भ नेतृत्व है। जितना ही सक्षम समर्पित और उत्कृष्ट कार्यक्षमता का नेतृत्व होता है, संगठन उतना ही प्रभावशाली बन जाता है। उपादान संग्रह-आतंकवादी संगठनों के लिये उपादन संग्रह अत्यंत कठिन कार्य होता है। इसलिए वे तीन उपाय करते हैं।
गुप्त रूप से खरीद, (ii) अन्य आतंकवादी संगठनों या शत्रु देशों से मुफ्त संग्रह, (iii) सरकारी तंत्र के शस्त्रगारों, चौकियों को लूटने अथवा मुठभेड़ में मरे सुरक्षाकर्मियों के शस्त्रों का संग्रह। (5) कार्यान्वयन-आतंकवाद का प्रमुख आधार स्तम्भ कार्यान्वयन है।
यदि कार्यान्वयन सटीक नहीं होता तो सारे प्रयास विफल हो जाते हैं और धीरे-धीरे संगठनात्मक क्षमता समाप्त हो जाती है। आतंकवाद के विविध रूप (1) क्षेत्रीय आतंकवाद-क्षेत्रीय आतंकवाद एक क्षेत्र विशेष में ही प्रभावी होता है; जैसे असम में उल्फा, पंजाब में खालिस्तान समर्थक संगठन या जम्मू-कश्मीर में जे०के०एल०एफ०।
(2) राष्ट्रीय आतंकवाद-राष्ट्रीय आतंकवाद के अन्तर्गत सम्पूर्ण राष्ट्र द्वारा शस्त्र उठाने और आतंकवादी कार्रवाई में लिप्त होने की बात आती है जैसा कि अफगानिस्तान में था या फिलिस्तीनी राष्ट्रीय परिषद् की कार्रवाइयां शामिल की जा सकती हैं। (3) अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद-इसके अन्तर्गत वे सभी कार्रवाइयाँ शामिल हो जाती हैं जो एक राष्ट्र दूसरे के विरुद्ध करता है।
भारत में आतंकवाद-भारत में आतंकवाद के प्रभाव केन्द्र असम, पंजाब, जम्मू-कश्मीर तथा तमिलनाडु हैं। भारत सरकार ने इस दृष्टि से 25 मई, 1985 को आतंकवाद विरोधी अधिनियम पारित किया था जिसमें आतंकवाद की निम्न परिभाषा दी गयी
“सरकार अथवा लोगों को आतंकित करने, समाज के विभिन्न वर्गों में वैमनस्य बढ़ाने तथा शान्ति भंग करने के उद्देश्य से बम-विस्फोट करने, आग्नेय अस्त्रों का प्रयोग करने, सम्पत्ति नष्ट करने, रसायन अथवा रासायनिक आयुध का प्रयोग करने तथा आवश्यक सेवाओं में गड़बड़ी पैदा करने के लिये जो भी कार्रवाई की जायेगी उसे 'आतंकवाद' माना जायेगा।"
चौबीस धाराओं वाले इस कानून के प्रमुख तीन अंग हैं, जो निम्न हैं(1) अधिकार क्षेत्र-इस कानून के अंतर्गत सरकार को विशेष अदालतें गठित करने का विशेषाधिकार प्रदान किया गया है तथा आतंकवाद रोकने के लिए विभिन्न व्यवस्थाएं की गयी हैं। यद्यपि विघटनवादी गतिविधियों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है। जैसे
(i) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भारत की प्रभुसत्ता और राष्ट्रीय अखण्डता को खतरा, (ii) भारतीय संघ में किसी राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश को संघ से पृथक करने का प्रयास का संकेत देने वाले कार्य, (iii) विदेशों के जासूसी कार्य/इनके अतिरिक्त अन्य राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के मूल्यांकन का भी अधिकार विशेष अदालतों का रहेगा।
दण्ड क्षेत्र-इस कानून के तहत व्यवस्था तीन कोटि में विभाजित है(1) यदि आतंकवादी कार्रवाई से किसी की मुत्यु होती है तो मृत्युदण्ड । (2) आतंकवादी कार्रवाई में शामिल होने की स्थिति में अपराध के अनुरूप दण्ड। 5 वर्ष कैद के अलावा उससे अधिक उम्र कैद की सजा।
(3) आतंकवादी कार्रवाई के लिये साजिश करने, प्रोत्साहन देने, पक्ष समर्थन करने या प्रेरणा देने की स्थिति में दण्ड 5 वर्ष कैद की सजा तथा जुर्माना हो सकता है, जो उम्र कैद तक को बढ़ाया जा सकता है। भारत में आतंकवाद के कारण भारत में आतंकवाद के प्रमुख कारणों में विदेशी प्रोत्साहन माना जाता है लेकिन वास्तविकता यह नहीं है।
यथार्थता बेरोजगारी, अधूरी महत्वाकांक्षाएं, क्षेत्रीय विवाद, धार्मिक उन्माद, भावार्थ हिंसा, भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था और बेरोजगारी ही प्रमुख कारणों में हैं। इसके साथ ही मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पित लोगों का राजनीति में अभाव, व्यक्तिगत लाभ-हानि को सर्वोच्च प्राथमिकता भी ऐसे कारण हैं जिनसे युवकों में राष्ट्र के प्रति आस्था में ह्रास हुआ है किन्तु ये सारे कारण आसानी से दूर नहीं किये जा सकते।
अतः देश में आतंकवाद समाप्त करने के लिये आवश्यक है कि आंतरिक कारणों को दूर किया जाये। अतः सबसे पहली आवश्यकता राजनीति शुद्धिकरण की है। इधर अपराधियों का राजनीति में प्रयास अत्यंत खतरनाक ढंग से हुआ है। इसे भी रोकना जरूरी है।
दूसरी बात बेरोजगारी समाप्त करना है, क्योंकि भारी संख्या में बेरोजगार युवक आतंकवादी संगठनों में शरीक होने लगे हैं क्योंकि उन्हें न केवल आश्रय मिलता है अपितु धन भी प्राप्त होता है। तीसरी महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है अपनी गुप्तचर सेवाओं को अधिक संगठित करने की, ताकि विदेशों में प्रशिक्षण के लिये जाने वाले भारतीय युवकों का प्रवास रोका जा सके।
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का समाधान-विश्व में जब एक व्यक्ति की प्रतिस्पर्धा बनी रहेगी आतंकवाद की समाप्ति सम्भव नहीं है, क्योंकि इन आतंकवादियों का दुरुपयोग एक देश दसरे के विरुद्ध किया करता है। अतः सबसे पहले यह आवश्यक है कि सभी देश आतंकवाद के प्रोत्साहन को भविष्य में छोड़ देने का संकल्प लें।
दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि विभिन्न सरकारों द्वारा आतंकवाद की परिभाषा अलग-अलग की जाती है। अतः जिसे एक देश आतंकवाद मानता है, दूसरा उसे अपनी हक की लड़ाई मानने लगता है।
अतः आतंकवाद को एक सर्वमान्य परिभाषा आवश्यक है जिसके आधार पर एक आचार संहिता बनायी जानी चाहिए और उसका उल्लंघन करने वालों को अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय से दंडित कराया जाना चाहिए।
तीसरी बात है विश्व स्तर पर आतंकवादी संगठनों को गहरी निगरानी में रखना। इसके लिये भी सभी गुप्तचर संगठनों के परस्पर सहयोग की आवश्यकता है। जो कि एक असम्भव कार्य है क्योंकि ये गुप्तचर संगठन एक-दूसरे के विरुद्ध आतंकवादियों का सहयोग लेते हैं।
चौथी बात यह होनी चाहिए कि जो भी देश आतंकवाद को बढ़ावा देता है उसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहिष्कार किया जाये, जैसा कि इधर लीबिया के साथ हुआ है। लेकिन यह अमेरिका के साथ भी होना चाहिए तभी इसका औचित्य सिद्ध हो सकता है।
पाँचवीं बात जरूरी है राजनयिकों या आतंकवाद के शिकार लोगों को आत्म-रक्षा का प्रशिक्षण दिया जाना। ऐसा करने से आतंकवादियों के हौसले पस्त हो सकते हैं और आतंकवाद को निष्क्रिय किया जा सकता है। अतः आवश्यकता है कि आतंकवाद को समाप्त करके प्रतिवर्ष हजारों निरीह लोगों को इसका शिकार होने से बचाया जाये।
मानवता के लिये गर्वित आतकंवाद की किसी भी हालत में सराहना नहीं की जा सकती। भारत में इस दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण कार्य ब्रिटेन के साथ आतंकवाद विरोधी समझौता करके पूरा किया है। इसी तरह समझौतों की सम्पूर्ण विश्व स्तर पर आवश्यकता है। तभी हम आतंकवाद से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।