टैक्सी ड्राइवर की आत्मकथा हिंदी निबंध | Translate taxi driver ki atmakatha essay in Hindi

 

टैक्सी ड्राइवर की आत्मकथा हिंदी निबंध | Translate taxi driver ki atmakatha essay in Hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम  टैक्सी ड्राइवर की आत्मकथा इस विषय पर निबंध जानेंगे। साहब, मैं एक मामूली टैक्सी ड्राइवर हूँ। मेरी दो-चार बातें आपको अच्छी लगी तो इसका यह मतलब नहीं कि मेरी रामकहानी सुनने मे भी आपको मजा आएगा। फिर भी आप सुनना ही चाहते हैं, तो सुनिए।


मेरा जन्म गुड़ की नगरी कोल्हापुर में हुआ था। मेरे पिता एक मिल-मजदूर थे। माँ साधारण पढ़ी-लिखी महिला थी। उनके मुँह से रामायण-महाभारत की कहानियाँ सुनना मुझे बहुत अच्छा लगता था। माता-पिता ने मुझे एक अच्छे स्कूल में भर्ती किया था। उन्होंने मुझे अच्छे संस्कार दिए। जब मैं बारहवीं कक्षा में था तब एक दिन अचानक मेरे पिता की मृत्यु हो गई।


पिता का देहांत हमारे परिवार के लिए वज्रपात से कम न था। मेरी माँ यहाँ-वहाँ काम करके किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर लेती थी। अब मैं ही उसकी आशाओं का आधार था। मेरा एक मित्र मुंबई में एक प्राइवेट कंपनी में ड्राइवर था। उसने मुझे मुंबई बुला लिया और टैक्सी चलाने का प्रशिक्षण दिलाया। ]


कुछ दिन मैंने दूसरों की टैक्सियाँ चलाईं। धारावी की झोपड़पट्टी में मुझे रहने की जगह मिल गई। मैंने अपनी माँ को भी यहीं बुला लिया। उस मित्र का उपकार मैं कभी नहीं भूल सकता। टैक्सी-ड्राइविंग के पेशे में मुझे अच्छी सफलता मिली। मेरी कड़ी मेहनत रंग लाई। कुछ ही समय में मेरी अपनी खुद की टैक्सी हो गई। कुछ और साल बीतने पर मैं तीन टैक्सियों का मालिक बन गया। 


अब मैंने झोपड़पट्टी छोड़ दी और दो कमरों का एक घर ले लिया। इस दरम्यान मेरा विवाह भी हो गया। जिंदगी मजे से बीत रही थी। तभी एक सड़क-दुर्घटना में मेरी माँ चल बसी। वह चारों धाम की यात्रा करना चाहती थी, पर मैं उसकी यह इच्छा पूरी न कर सका।


बरसों की ड्राइविंग में मुझे कई तरह के अनुभव हुए। यों तो मेरी तेज नजर सवारियों को झट से पहचान लेती थी, फिर भी मैंने कई बार धोखा खाया। एक बार तीन-चार आदमी मेरी टैक्सी में बैठे। एक सुनसान जगह उन्होंने छुरा दिखाकर मुझे उतार दिया और मेरी टैक्सी लेकर चंपत हो गए। 


मैंने पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई। तकदीर अच्छी थी कि दूसरे ही दिन मेरी टैक्सी सही-सलामत मिल गई। एक बार दो व्यक्ति किसी बड़े आदमी का नोटों भरा बैग छीनकर आए और पिस्तौल दिखाकर मेरी टैक्सी में बैठ गए। मैंने उन्हें उनके ठिकाने पहुंचा दिया, लेकिन पुलिस ने मुझे भी पकड़ा। 


बड़ी झंझट के बाद मैं छुटकारा पा सका। इसी प्रकार एक दिन एक मोटे-ताजे सेठ को मेरी टैक्सी में ही दिल का दौरा पड़ा और वे वहीं राम को प्यारे हो गए। मैंने पुलिस को सूचना दी। पुलिस के साथ ही मैं उन्हें लेकर अस्पताल पहुँचा। बड़ी मुश्किल से पुलिस के चक्कर से मुझे मुक्ति मिली।


अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ। टैक्सी का व्यवसाय मेरे दो बेटे सँभालते हैं। मुझे संतोष है कि मैंने अपने पेशे से कभी बेवफाई नहीं की। कम दूरी तक जानेवाले यात्रियों को भी मैंने कभी निराश नहीं किया। 


कई बार गरीब मरीजों को मैंने कम पैसे लेकर भी अस्पताल पहुँचाया। ड्राइवरी के पेशे में भी मैंने सेवा के मौके हाथ से नहीं जाने दिए। इस संतोष को ही मैं अपनी असली कमाई समझता हूँ। अच्छा, तो अब चलूँ ! बहुत बहुत धन्यवाद। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।