टूटे हुए विमान की आत्मकथा हिंदी निबंध | TUTE HUE VIMAN KI ATMAKTHA HINDI NIBANDH
नमस्कार दोस्तों आज हम टूटे हुए विमान की आत्मकथा इस विषय पर हिंदी निबंध जानेंगे। शायद आप मुझे पहचान नहीं पा रहे हैं। पहचानेंगे भी कैसे? मेरे शरीर के पुर्जे-पुर्जे अलग हो गए हैं। मेरे मजबूत पंख चकनाचूर हो गए हैं। लीजिए, मैं शुरू से अपनी कहानी सुनाता हूँ।
मैं भारतीय वायुसेना का एक लड़ाकू विमान हूँ। मेरा जन्म बंगलौर के एक सरकारी कारखाने में हुआ था। तरह-तरह के यंत्रों को जोड़कर मुझे बनाया गया था। जब मैं बनकर तैयार हुआ, तो मेरा चमचमाता रूप देखकर सब मुग्ध हो गए थे।
अन्य विमानों को उड़ान भरते देख मेरी भी आसमान में उड़ने की इच्छा होती थी। आखिरकार मेरे परीक्षण का समय आया और मुझे उड़ाया गया। प्रथम उड़ान में ही मैं खरा उतरा। मैं खुशी से फूला नहीं समाया। एक दिन मुझे सेना के सुपुर्द कर दिया गया।
वहाँ मुझे बार-बार उड़ान भरने का मौका मिला। मेरे करतब देखकर सैनिकों का सीना गर्व से फूल उठता था। फिर मुझे बमबारी करनेवाले एक जत्थे में शामिल कर लिया गया। उसी समय पाकिस्तान ने हमारे देश पर चढ़ाई कर दी। हमारे जत्थे के चालकों को पाकिस्तान पर बमबारी करने का आदेश मिला।
मैं अपने साथी विमानों के साथ उड़ चला। हमने बमबारी करके शत्रु के एक हवाई अड्डे को तहस-नहस कर डाला। बमबारी से उठी भीषण अग्नि-ज्वालाओं की चपेट में आकर शत्रु के कई विमान जलकर खाक हो गए। बमबारी कर हम वहाँ से तुरंत भागे।
हम सीमा के करीब पहुँचनेवाले ही थे, तभी दुश्मन की एक विमानभेदी तोप ने निशाना साधा। शेष विमान तो बच निकले पर एक गोला मेरे पिछले हिस्से में आ लगा। मुझमें आग लग गई। लेकिन मेरा चालक बहुत बहादुर था। वह जल्दी से जल्दी भारतीय सीमा में पहुँच जाना चाहता था। मेरा बुरा हाल था। फिर भी उसने जान की बाजी लगा दी।
किसी तरह चालक मुझे अपनी सीमा में ले आने में सफल हो गया। मगर आग मेरे समूचे शरीर में फैल चुकी थी। मैं अपने चालक को लिये-दिये पहाड़ियों के बीच जा गिरा। गिरते ही मेरे टुकड़े-टुकड़े हो गए। मेरा चालक वीरगति को प्राप्त हो गया।
सेना के जवानों ने हमें उस पहाड़ी से ढूँढ़ निकाला। मेरे चालक की राष्ट्रीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि की गई। मेरे शरीर के टुकड़े इकट्ठे करके सैनिक छावनी में लाए गए। तब से मेरा मलबा यहीं पड़ा हुआ है।
मेरा जीवन बहुत छोटा रहा। लेकिन मुझे गर्व है कि मैं अपने देश के कुछ काम आया। मैं संतुष्ट हूँ कि मैंने अपना शरीर देश-सेवा के लिए न्योछावर कर दिया। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।