वर्तमान शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष हिंदी निबंध Vartman Shiksha Pranali Ke Gun Or Dosh Essay In Hindi

 

वर्तमान शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष हिंदी निबंध  Vartman Shiksha Pranali Ke Gun Or Dosh Essay In Hindi

 नमस्कार  दोस्तों आज हम वर्तमान शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष इस विषय पर हिंदी निबंध जानेंगे। यद्यपि समय-समय पर भारत में शिक्षा प्रणाली में तालमेल लाने के लिए समय के अनुसार सुधार किये जाते रहे हैं किन्तु यह अभी भी काफी हद तक पुरानी और अविकसित है। 


हम अभी भी इस शिक्षा-प्रणाली द्वारा अधिकांश लिपिकों और सफेदपोश श्रमिकों की फौज ही तैयार कर रहें है जिसे करीब एक सौ पछहत्तर साल पहले लार्ड मैकाले ने शुरू किया था। वर्तमान व्यवस्था में हमारी शिक्षा-व्यवस्था के स्वरूप और विषय-वस्तु में दूरगामी और मूलभूत परिवर्तन की आवश्यकता है।


किन्तु इस व्यवस्था के अपने कुछ फायदे हैं। यह छात्रों में पढ़ने की भावना तथा दिये गये कार्य के प्रति श्रद्धा और समर्पण को मन में बैठाती है। कम्प्यूटर के इस युग में भी अनिष्टकर इस रटन्त पढ़ाई का भी मौके पर हमें महत्त्वपूर्ण तथ्य और आंकड़े पाप्त करने का लाभ है। 


मानव स्मृति और सोचने की शक्ति का स्थान कोई मशीन नहीं ले सकती है। नई ‘राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, 1986 को बनाते वक्त इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखा गया था। यह हमारी शिक्षा-व्यवस्था में नया युग लाएगी और इसे अधिक यथार्थपरक व रोजगारोन्मुख बनाएगी, ऐसी आशा अब भी है। 


इसने शिक्षा के सभी पाँच मुख्य शीर्ष, जैसे प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, उच्च शिक्षा और वयस्क शिक्षा को सम्मान दिया है। नौवीं पंचवर्षीय योजना में भारत में शिक्षा को 15 से 35 वर्ष तक के लोगों के बीच सर्वव्यापक बनाया जाएगा। 


आज की शिक्षा-व्यवस्था में इसी बात की काफी कमी है कि शिक्षा के रुचिपूर्ण और दिलचस्प न होने की वजह से छात्र इससे दूर भागते हैं। यह सबसे गम्भीर उन समस्याओं में से एक है जो हमारे देश के शिक्षा-संस्थानों के स्तर में गिरावट का कारण हैं।


वर्तमान शिक्षा-व्यवस्था का दूसरा दोष बिना सोचे-समझे सभी को महाविद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा देने की प्रवृत्ति है। इसे अवश्य ही रोकना होगा। किसी भी नौकरी अथवा पेशे के लिए उच्च माध्यमिक शिक्षा या 10 + 2 की योग्यता काफी होनी चाहिए। 


हमारे महाविद्यालय में छात्रों की भीड़ भी वर्तमान व्यवस्था का एक दोष है जो उन्हें डिग्री या डिप्लोमा पाने के बाद कुछ नहीं देती, यहाँ तक कि पैसा कमाने वाला रोजगार भी नहीं। उच्च शिक्षा को चयनात्मक व रचनात्मक बनाना होगा।


हमारे डाक्टरों, इंजीनियरों तथा तकनीकविदों से उनकी योग्यता का तत्त्व आरक्षण और सीटें सुरक्षित होने के कारण छिन जाता है। ऐसे पाठ्यक्रमों में नामांकन के लिए सिर्फ योग्यता का ही मापदंड होना चाहिए। 


साथ ही इस आयु वर्ग के लोगों में निरक्षरता को पूरी तरह से समाप्त किया जाना चाहिए। 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में वह कार्यवाही कार्यक्रम (P.O.A.) सम्मिलित है, जिसे सन् 1992 में अद्यतन किया गया। 


प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता बनाये रखने बालिका शिक्षा पर विशेष जोर देने (Special stress on girls education), माध्यमिक शिक्ष को व्यवसायपरक बनाने आदि सुझाव सम्मिलित हैं। 


वयस्क शिक्षा में प्रयास न होना भी वर्तमान शिक्षा-प्रणाली का एक दोष है। अभी तक इस क्षेत्र में हुआ प्रयास असन्तुलित और अव्यवस्थित है। भविष्य में वयस्क शिक्षा के स्वप्न को अधिक विश्वसनीय बनाने के लिए योजनाबद्ध और केन्द्रीकृत कदम उठाने होंगे। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।