यदि शिक्षक न होते तो निबंध हिंदी में | yadi shikshak na hote to hindi nibandh

 

यदि शिक्षक न होते तो निबंध हिंदी में | yadi shikshak na hote to hindi nibandh

नमस्कार  दोस्तों आज हम यदि शिक्षक न होते तो निबंध हिंदी इस विषय पर निबंध जानेंगे। हमारे जीवन में शिक्षा का अत्यधिक महत्त्व है। शिक्षा ही व्यक्ति को संस्कारसंपन्न तथा सभ्य बनाती है। शिक्षा ही मनुष्य की सोई हुई शक्तियों को जागृत करती है जिससे उसके व्यक्तित्व का विकास होता है। सुशिक्षित व्यक्ति ही समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकता है और सभ्य लोगों की पंक्ति में बैठने का अधिकारी बनता है। 


शिक्षा द्वारा ही व्यक्ति के कला-कौशल का विकास होता है और वह अपनी जीविका कमाने योग्य बनता है। इस प्रकार की शिक्षा प्रदान करनेवाले महानुभाव 'शिक्षक' या 'गुरु' कहलाते हैं। यदि वे न होते तो हम अज्ञान के अंधकार में भटकते ही रह जाते और मानव कहलाने के अधिकारी न बन पाते। किसी विद्वान, मनीषी अथवा महापुरुष को उच्च शिखर तक पहुँचाने का श्रेय भी अधिकांशत: उसके शिक्षकों को ही दिया जाता है।



आज हमारे देश की युवा पीढ़ी पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंग कर अपने पूर्वजों के आदर्शों का त्याग करती जा रही है। वह अपने जीवन में मौज-मस्ती और स्वच्छंद विहार को ही सब कुछ मानने लगी है। ऐसी स्थिति में सहृदय एवं संस्कार-संपन्न शिक्षक ही अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से वर्तमान युवा पीढ़ी को सन्मार्ग पर लाने का प्रयत्न करते हैं। 




यदि शिक्षक न होते, तो हमारे देश की युवा पीढ़ी को अध:पतन के मार्ग पर जाने से बचाना असंभव हो जाता।

आजकल हमें सर्वत्र अनुशासनहीनता के उदाहरण दिखाई दे रहे हैं। 



अत्यंत प्रतिष्ठित लोग भी स्वार्थ सिद्ध करने के लिए अपनी मान-मर्यादा भुलाकर अनुशासनहीनता पर उतर आए हैं। ऐसी विषम स्थिति में शिक्षक ही अपने अनुशासित जीवन का उदाहरण प्रस्तुत कर समाज के लोगों को अनुशासन-पालन की प्रेरणा दे रहे हैं। यदि शिक्षक न होते, तो अनुशासनहीनता इतनी बढ़ जाती कि नैतिकता का नामोनिशान न रह जाता।



किसी भी समाज का निर्माण उसके सेवाभावी एवं परोपकारी सदस्यों पर ही निर्भर होता है। वे ही अपने समाज और देश की प्रगति में योगदान कर सकते हैं, क्योंकि उनमें सत्यप्रियता, करुणा, क्षमा, त्यागभावना आदि मानवीय गुण होते हैं।


 जो साहसी, पराक्रमी, उदारचेता तथा दूरदर्शी व्यक्ति हैं, वे ही समाज, देश और विश्व का कल्याण कर सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों का निर्माण त्यागभावना-संपन्न कुशल शिक्षक ही कर सकते हैं। यदि ये शिक्षक न होते, तो स्वार्थी एवं अवसरवादी व्यक्तियों की संख्या बहुत बढ़ जाती और समाज तथा देश में अराजकता छा जाती।




इस युग में ज्ञान का विस्फोट हो रहा है। ज्ञान की प्रत्येक शाखा-प्रशाखा में प्रतिदिन नई-नई खोजों और सिद्धांतों का समावेश होता जा रहा है। इस किताबी ज्ञान को कुशल शिक्षक ही आत्मसात कर व्यावहारिकता का जामा पहनाते हैं। वे ही लोगों को यह सिखाते हैं कि इस पुस्तकीय ज्ञान को जीवन के लिए उपयोगी कैसे बनाया जाए।



 यदि शिक्षक न होते, तो हमारे विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों से ऐसे विद्यार्थी निकलते, जो व्यावहारिक ज्ञान से शून्य होते और समाज तथा देश के लिए बोझ बन जाते। आजकल शिक्षा देने के लिए अनेक वैज्ञानिक उपकरणों का आविष्कार हुआ है। इनमें कम्प्यूटर अथवा संगणक का स्थान प्रमुख हैं।



इंटरनेट पर भी शिक्षा दी जाने लगी है। संगणक अनेक प्रकार की गुत्थियों को पल भर में सुलझा सकता है, किंतु ये उपकरण मानव-मस्तिष्क का स्थान नहीं ले सकते। ये विद्यार्थियों के मन पर अच्छे संस्कार नहीं डाल सकते। ये उन्हें करुणा, क्षमा, उदारता, साहस आदि मानवीय गुणों से संपन्न नहीं बना सकते। 



इंटरनेट से विद्यार्थी विशेषज्ञों के पास से अपनी समस्याओं के समाधान पा सकते हैं, परंतु इस साधन का दुरुपयोग भी हो सकता है। केवल सचेत तथा कर्तव्यपरायण शिक्षक ही उचित-अनुचित की परख करके विद्यार्थियों का समुचित मार्गदर्शन कर सकते हैं। 



यदि शिक्षक न होते, तो उच्चकोटि के साहित्यकारों, दार्शनिकों, वैज्ञानिकों आदि का निर्माण न हो पाता और मानव समाज आदिम युग में लौट जाता।



स्पष्ट है कि समाज, देश तथा विश्व के लिए शिक्षक का महत्त्व निर्विवाद है। इसीलिए हमारे शास्त्रों में शिक्षकों की वंदना करते हुए कहा गया है . गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः।। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।